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शिक्षा बिल पर सभी कन्फ्यूजन खत्म ! विधानसभा में शिक्षा मंत्री ने शिक्षा बिल पर पर क्या कहा?

मुख्यमंत्री जी ने हमें पूरी स्वतंत्रता दी, जिसके लिए मैं अपनी पार्टी और दिल्ली की जनता की ओर से उनका आभार व्यक्त करता हूं।

विपक्ष के कई सदस्यों ने इस बिल पर बिना पढ़े सिर्फ राजनीतिक बयान दिए—लगभग 10–12 ने बोला, पर बिल की धाराओं का उल्लेख केवल कुछ लोगों ने ही किया। यह सदन महज़ रिटोरिक से नहीं चलता। जब status quo टूटता है, तो टकराव होता है—और यही कारण है कि 10 साल से जमे लोग आज असहज हैं।

विपक्ष द्वारा फैलाया गया यह आरोप कि हम निजी स्कूलों को 10% फीस वृद्धि की अनुमति देंगे, पूरी तरह झूठ है। इस बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। वास्तविकता यह है कि इनके शासनकाल में ही बार-बार चुनिंदा स्कूलों को फीस बढ़ाने की मंजूरी दी गई—2016–17 में 30 स्कूल, 2017–18 में 60, कोविड के दौरान 94, 2021–22 में 195 और 2022–23 में 145 स्कूल।

ऑडिट के नाम पर सिर्फ औपचारिकताएं निभाई गईं—1973 के नियमों के तहत ज़ोन में 5 स्कूल के ऑडिट की बजाय, नाममात्र जांच हुई। 2023–24 में 262 स्कूलों ने आवेदन किया, केवल 19 को मंजूरी दी गई और बाकी पर कोई फैसला नहीं लिया गया। 2024–25 में 244 स्कूलों ने आवेदन किया, लेकिन एक भी मंजूर नहीं हुआ—फाइलें लंबित रखीं।

दिल्ली में लगभग 1,733 निजी स्कूल हैं, लेकिन इनके नियंत्रण में अधिकतम 236 ही आवेदन करते थे—बाकी मनमाने तरीके से फीस बढ़ाते रहे और कोई निगरानी नहीं थी। उदाहरण के तौर पर, नजफगढ़ में एक स्कूल ने ₹2,000 से फीस बढ़ाकर ₹2,400 कर दी, बिना किसी कागज़ी प्रक्रिया के।

विपक्ष की यह दलील कि उनके शासन में फीस नहीं बढ़ी, तथ्यात्मक रूप से गलत है। इस बिल का उद्देश्य इसी मनमानी को रोकना और सभी अभिभावकों को राहत देना है।

जहां तक सिलेक्ट कमेटी की बात है, 2020–2025 के बीच सदन में मात्र 14 बिल पास हुए—जिनमें से 5 केवल विधायकों के वेतन से संबंधित थे। यह हमारी विधायी प्राथमिकताओं की तुलना भी स्पष्ट करता है।

माननीय अध्यक्ष जी,


देखिए, जीएसटी अमेंडमेंट बिल हो, तीन या पाँच बिल एक ही दिन में हों—हमने सब पर चर्चा की है। एजुकेशन का बिल पास हुआ तो अगले दिन इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म, फिर उसी दिन सिख गुरुद्वारा बिल, उसके अगले दिन टूरिज़्म बिल—ऐसे करके कुल 14 बिल पास हुए। 2012 के बाद से इस विधानसभा में कोई भी बिल सिलेक्ट कमेटी में नहीं भेजा गया।

2012 में दिल्ली रजिस्ट्रेशन ऑफ मैरिज बिल सिलेक्ट कमेटी में गया था—आज वह कहां है? किसी को पता नहीं। विधानसभा रिकॉर्ड में भी उसका कोई अता-पता नहीं। फिर भी विपक्ष इसे सिलेक्ट कमेटी भेजने की बात करता है।

हमने भी दो बार कोशिश की, लेकिन केंद्र सरकार ने रोक दिया। अमानतुल्लाह खान साहब यहां थे—सेवाएं आपके पास, फलाना आपके पास—हमें करने ही नहीं दिया। विपक्ष अपनी नाकामी छिपाने के लिए “विक्टिम कार्ड” जेब में रखकर हर बार लहराता है।

2015 में दिल्ली स्कूल वेरिफिकेशन ऑफ अकाउंट्स एंड रिफंड ऑफ एक्सेस फीस बिल लाया गया, और अगले ही दिन उसमें संशोधन कर एक और शिक्षा संबंधी बिल जोड़ दिया गया। आज वे कहते हैं कि इसे पब्लिक कंसल्टेशन में जाना चाहिए था—ज़रूर जाना चाहिए, लेकिन तब तो आपने 131 के अंतर्गत जवाब ही नहीं दिया।

2015 के इन बिलों का इतिहास देख लीजिए—20 नवंबर को पेश हुए, और 30 नवंबर को शाम 4 बजे तीनों बिलों पर चर्चा शुरू हुई। चर्चा मनीष सिसोदिया जी ने शुरू की, बोलने वालों में सभी बीजेपी के लोग थे—आम आदमी पार्टी के एक भी सदस्य ने हिस्सा नहीं लिया।

उस समय जो फीस रेगुलेशन कमेटी बनी थी, उसमें पेरेंट्स का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। हमने पांच पेरेंट्स जोड़े, तो माननीय अध्यक्ष जी ने सुझाव दिया कि इन्हें 10 कर दो—इसका मतलब हमारी बात सही थी।

आप कहते हैं कि जुर्माना 1 लाख से 25 लाख तक होना चाहिए—आज आपको 1 करोड़ जुर्माने की याद आई, लेकिन बिल बनाते वक्त क्यों नहीं आई? यह तो वही बात हुई—“काश पहले कर लेते।”

हमारे बिल में अपील की बहु-स्तरीय व्यवस्था है, लाइब्रेरी में बच्चों को बंद करने जैसे मामलों पर भी स्पष्ट दंड का प्रावधान है। आपके 2015 के बिल में तो शिकायत केवल स्कूल फंड के उपयोग या अतिरिक्त फीस न लौटाने तक सीमित थी—फीस की दर पर कोई रेगुलेशन नहीं था।

डीपीएस द्वारका में बाउंसर लगाने की घटनाएं आपकी नीतियों का नतीजा थीं। हमारे बिल में ऐसे मामलों के लिए सख्त दंड का प्रावधान है।

और रही केंद्र सरकार की बात—आतसी जी कह रही थीं कि केंद्र ने बिल पास नहीं किया। सच यह है कि वह बिल इसलिए लौटा क्योंकि उसमें Statement of Objects and Reasons ही नहीं था। भारत सरकार ने DOE-GNCTD को सुझाव दिया कि फीस से जुड़े मुद्दों का गहन अध्ययन किया जाए। इस बीच आपने खुद ही लिख दिया कि NEP 2020 आने के बाद हम नया बिल बनाएंगे—फिर क्यों नहीं भेजा?

अगला प्रस्ताव आपने Proposal for Regulating Fee Hike for Private Unaided Recognised Schools के नाम से लाया, जिसमें केवल DDA या अन्य एजेंसियों द्वारा अलॉट की गई ज़मीन पर चलने वाले स्कूलों को शामिल किया—बाकी निजी स्कूलों का क्या?

माननीय अध्यक्ष जी,


विशेष रूप से उन माननीय सदस्यों से कहना चाहूंगा, जो अनधिकृत कॉलोनियों से चुनकर आए हैं—इस मुद्दे पर ध्यान दें। यह बिल, Action Committee के प्रतिनिधित्व के आधार पर तैयार हुआ है। कृपया 9 अक्टूबर 2023 की ताज़ा रिप्रेजेंटेशन देखें, जो Action Committee of Unaided Recognized Private Schools द्वारा दी गई थी, जिसमें निजी स्कूलों की फ़ीस बढ़ोतरी के लिए CPI-linked फ़ॉर्मूला लागू करने का अनुरोध किया गया था।

CPI-linked फ़ॉर्मूले का मतलब है—Consumer Price Index के अनुसार + 6% अतिरिक्त, यानी हर साल कम से कम लगभग 12% फ़ीस बढ़ाने की अनुमति। बाद में प्रस्ताव में यह भी जोड़ा गया कि दिल्ली में फ़ीस वृद्धि औसत CPI प्रतिशत + 7% हो, यानी करीब 13% वार्षिक बढ़ोतरी। यह प्रस्ताव 16 नवंबर 2023 को शिक्षा मंत्री के पास गया और उन्होंने इस पर प्रस्तुति चाही।

इसके बाद 18 अप्रैल 2024 को विभाग ने LA opinion सहित यह फ़ाइल आगे बढ़ाई। फिर 15 जनवरी 2025 को तत्कालीन मुख्यमंत्री ने नोट लिखकर कहा कि प्रस्ताव की विस्तृत जांच हो, ताकि फ़ीस नियमन का ढांचा अभिभावकों और शैक्षणिक संस्थानों—दोनों के हित में संतुलित रहे।

निजी स्कूल दिल्ली की हकीकत हैं, क्योंकि अब तक की सरकारें पर्याप्त गुणवत्ता वाले सरकारी स्कूल नहीं बना सकीं। लेकिन सवाल यह है कि 2023 से 2025 तक यह फ़ाइल मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री के कार्यालय में पड़ी रही, न खारिज हुई, न मंज़ूर—बस निजी स्कूलों से बातचीत और सौदेबाज़ी चलती रही। यह अंडर द टेबल समझौतों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

विपक्ष ने इस बिल पर चार प्रमुख आपत्तियां बार-बार उठाई हैं—

  1. 450 अभिभावकों को इकट्ठा करने की व्यवहारिक कठिनाई,

माननीय अध्यक्ष जी,

मैं आज तथ्यों और बिल के स्पष्ट प्रावधानों के आधार पर उत्तर दे रहा हूँ। विरोध भी यदि हो, तो वह संस्थागत और तथ्यपरक होना चाहिए, न कि किसी की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद या मनमर्जी पर।

दिल्ली में निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या कोई अचानक की घटना नहीं है, बल्कि यह विपक्ष के वर्षों तक गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा देने में विफल रहने का परिणाम है। आपने दिल्ली की जनता को अच्छी शिक्षा नहीं दी, इसलिए अभिभावकों को निजी स्कूलों की ओर रुख करना पड़ा।

अब इस बिल के 15% वाले प्रावधान पर भी विपक्ष ने बिना पढ़े आपत्ति जता दी। सेक्शन 2 में साफ लिखा है—Aggrieved Parent Group का मतलब है ऐसे अभिभावकों का समूह, जो प्रभावित कक्षा के कुल अभिभावकों के कम-से-कम 15% से कम न हो। ‘इफेक्टिव स्टैंडर्ड’ का अर्थ है 40 बच्चों की कक्षा। यानी, जब किसी छात्र की कक्षा बदलती है—जैसे प्राथमिक से मिडल या मिडल से सीनियर सेकेंडरी—तो फीस में बदलाव की स्थिति में यही नियम लागू होगा।

मुख्यमंत्री जी ने संवेदनशीलता और दूरदर्शिता से इस बिल के हर प्रावधान को तैयार कराया है, जिसमें अभिभावकों का हित केंद्र में है। यह दृष्टिकोण संतुलित है—न तो स्कूलों पर अराजक दबाव और न ही अभिभावकों पर आर्थिक बोझ।

विपक्ष यह कह रहा है कि इसमें ऑडिट का प्रावधान नहीं है, जबकि सेक्शन 20 में स्पष्ट लिखा है कि इस एक्ट के प्रावधान, दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट 1973 और Right of Children to Free and Compulsory Education Act 2009 सहित, सभी लागू कानूनों के अतिरिक्त होंगे, उनके विपरीत नहीं। 1973 का कानून संसद का कानून है—इसे दिल्ली विधानसभा रद्द नहीं कर सकती, यह सामान्य समझ की बात है।

इसलिए, ऑडिट के सभी नियम पूर्ववत लागू रहेंगे। जो लोग ऑडिट न होने की अफवाह फैला रहे हैं, वे जनता को गुमराह कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जी ने बिल का मसौदा तैयार करने से लेकर हर बैठक में स्वयं भाग लेकर यह सुनिश्चित किया कि जनता का हित ही इसका मुख्य उद्देश्य रहे, और किसी भी तरह से इसे कमजोर न होने दिया जाए।

इसके अलावा, हमने यह भी सुनिश्चित किया है कि फीस बढ़ाने में अभिभावकों के हाथ में वीटो पावर हो—पाँच में से एक भी सदस्य सहमत न हो, तो फीस नहीं बढ़ेगी। यह प्रावधान दिल्ली के 18 लाख बच्चों और उनके अभिभावकों को सीधा लाभ देगा।

माननीय अध्यक्ष जी,

दिल्ली में 1700 से अधिक तथाकथित प्राइवेट स्कूल हैं, लेकिन विपक्ष ने कभी उनकी वास्तविक समस्याओं पर विचार नहीं किया। लैंड क्लॉज़ तो केवल उन पर लागू होता है जिन्होंने डीडीए से ज़मीन ली है।

जब इस बिल का मसौदा तैयार हो रहा था, मुख्यमंत्री जी ने शिक्षा विभाग से पूछा—“इन 300 के अलावा बाकी स्कूलों का क्या होगा? उन पर क्या असर पड़ेगा?” क्योंकि चिंता केवल लैंड क्लॉज़ की नहीं, बल्कि सभी स्कूलों में फीस नियंत्रण की है।

लैंड क्लॉज़ का मामला भी समझ लीजिए—ज़मीन देती है डीडीए, दिल्ली सरकार नहीं। लीज़ में जो शर्तें लिखी हैं, अगर कोई स्कूल उन्हें तोड़ता है, तो कार्रवाई का अधिकार डीडीए के पास है। डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन केवल डीडीए को पत्र लिख सकता है। इससे आगे वह कुछ नहीं कर सकता। लेकिन, सेक्शन 14 पढ़ा होता तो समझ आता कि डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन को एसडीएम जैसी शक्तियां दी गई हैं—स्कूल के खाते सीज़ करने, चल-अचल संपत्ति अटैच करने तक की ताक़त।

आपके ज़माने में शायद अधिकारी समझौता कर लेते होंगे, लेकिन आज नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी के नेतृत्व में समझौते की कोई जगह नहीं है। यह लड़ाई केवल 300 नहीं, बल्कि पूरे 1700 स्कूलों की मनमानी फीस के खिलाफ है।

बुराड़ी के पेरेंट्स से क्या कहेंगे आप, जब उनकी चिंता आपके एजेंडे में ही नहीं है? आप कहते हैं फीस वापस नहीं होगी—आरोप भी लगाते हैं—लेकिन असलियत यह है कि आपके कार्यकाल में दो बार बिल लाने की कोशिश हुई, पर “मोल-तोल” न हो पाने के कारण फाइलें महीनों दबाकर रखी गईं। सात महीने तक मुख्यमंत्री/शिक्षा मंत्री के दफ़्तर में पड़ी रहीं।

सरकार के पास एक-एक दस्तावेज़ है, क्यों पड़ी रहीं ये फाइलें? क्या लेन-देन की कोशिशें होती रहीं? अगर 7% CPI + 7% का प्रस्ताव अच्छा था, तो पहले दिन ही रिजेक्ट क्यों नहीं किया? और आज, जब हम जनता को राहत देने वाला बिल ला रहे हैं, तो आप उसका विरोध क्यों कर रहे हैं?

मैं मुख्यमंत्री जी का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने एक सशक्त और निर्णायक बिल बनाया, जिसने शिक्षा को व्यापार बनाने वालों पर रोक लगा दी है। अब अराजकता नहीं चलेगी, शिक्षा का व्यवसाय नहीं होगा।

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