एग्जिट पोल कह रहे हैं कि बीजेपी दिल्ली में आसानी से सरकार बना रही है, इसके अनुसार बीजेपी का 27 वर्षों का वनवास खत्म होगा। दिल्ली में बीजेपी का सरकार बनाने के सपना मोदी के कार्यकाल में पूरा होगा। दिल्ली की जनता को लगता है कि असली विकास विकास प्रधान मंत्री मोदी के कार्यकाल में ही सो सकता है। लेकिन एक्टजट पोल एग्जैक्ट पोल में बदलेगा या नही ये तो 8 फरवरी को तय होगा। हालांकि रूझानों से उत्साहित बीजेपी दफ़्तर में सभी 7 सांसदो सभी 70 उम्मीदवार, दिल्ली प्रदेश के पदाधिकारी, सभी जिला अध्यक्षों की बड़ी बैठक हुई जिसमें प्रदेश अध्यक्ष सचदेवा और बैजयंत पांडा शामिल थे। अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि मतदान के बाद पार्टी का फीडबैक लिया गया और 9 फरवरी को मतगणना के लिए कैसे तैयार रहना है इसका बड़ा ब्लूप्रिंट तैयार किया गया।
दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद अब चर्चा का केंद्रबिंदु चुनाव के नतीजे हैं। पांच एग्जिट पोल का औसत बता रहा है कि भाजपा 27 साल का सूखा समाप्त करते हुए दिल्ली में 70 में से कम से कम 39 सीटों पर जीत दर्ज करने जा रही है, जबकि बहुमत का आंकड़ा 36 है। दिल्ली में नतीजे 8 तारीख को घोषित होंगे। भाजपा पिछले 28 सालों से दिल्ली की सत्ता से बाहर है, आखिरी बार सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री थीं। इस बार अगर भाजपा जीतती है, तो दिल्ली में मुख्यमंत्री कौन होगा? आइए, उन संभावित चेहरों पर नज़र डालें जिन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
मनोज तिवारी को मिल सकती है कमान
मनोज तिवारी का नाम इस दौड़ में सबसे आगे है। तिवारी पूर्वांचल का बड़ा चेहरा माने जाते हैं और दिल्ली प्रदेश की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वे दो बार सांसद भी रह चुके हैं और पार्टी ने उन्हें मुखरता पूर्वक आगे किया है। अगर भाजपा जीतती है, तो मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
विजेंदर गुप्ता को मिल सकती है जिम्मेदारी
विजेंदर गुप्ता, जो रोहिणी विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी हैं, एक और संभावित नाम हैं। पिछले 10 वर्षों में उन्होंने दिल्ली भाजपा के धाकड़ नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आम आदमी पार्टी के खिलाफ उन्हें विपक्ष की मजबूत प्रतिनिधि माना जाता है। गुप्ता की पकड़ पार्टी के कैडर और संगठन में भी मजबूत है, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
वीरेंद्र सचदेवा की मेहनत
वर्तमान में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने इस चुनाव में कड़ी मेहनत की है। उनका योगदान महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यदि पार्टी जीती, तो सचदेवा को भी मुख्यमंत्री पद के लिए चुना जा सकता है। इन तीन संभावित चेहरों में से कौन मुख्यमंत्री बनेगा, यह देखने की बात है, लेकिन इन नामों पर चर्चा जोरों पर है।
केजरीवाल जीतते हैं तो कैसी होगी उनकी सियासत
अगर सर्वेक्षणों से उलट केजरीवाल जीत गए, तो वह राष्ट्रीय राजनीति में ऐसे राष्ट्रीय नेता के तौर पर ऐसे नेता के तौर पर उभरेंगे, जिनमें ब्रांड मोदी को हराने की ताकत दिखेगी। केजरीवाल ने 2013 में जिन भ्रष्टचार और अन्य मुद्दों पर शीला दीक्षित नई दिल्ली से हराया था11 वर्षों बाद वह उन्हीं मुद्दों पर नई दिल्ली से हार सकते हैं।
, दिल्ली की राजनीति में एक समय जो कद शीला दीक्षित जी का रहा है, वह कभी भी कोई बदल नहीं सकता है। आधुनिक दिल्ली की आर्टिटेक्ट शीला के शासन में ही दिल्ली को सिटी ऑफ फ्लाईओवर्स का टैग दिया। दिल्ली को मेट्रो की सौगात भारतीय राजनीति के सबसे दिग्गज नेता, जिनके विरोधी भी उनके मुरीद थे, अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में ही मिली।
वैसे तमिलनाडू में जो जनाधार और लोगों का सच्ची निष्ठा से समर्पण कभी एमजी रामाचंद्रन और जे.जयललीता के लिए देखा गया है, आंध्र प्रदेश में ऐसा ही एनटीराम राव के लिए था, महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे का था, इंदिरा गांधी ने वर्ष 1969 से 1973 और 1980 से 1984 तक देखा। वैसा ही जनाधार और लोगों का सपोर्ट 2011 से 2021 तक अरविंद केजरीवाल के प्रति रहा। मोदी का गुजरात के 13 वर्ष के मुख्यमंत्री कार्यकाल में गुजरात के लोगों में और अब 11 सालों से देश के कई राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति देखने को मिल रहा है।
कई राजनीतिक विशेषज्ञों व वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि भारतीय राजनीति में सिर्फ दो ही नेता देश की राष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रीय नेता बने है, जिनका अपने राजनीतिक दल में सबसे मजबूत पकड़ रही और जनता में भी जनाधार रहा है और जनता की नव्ज को पहचाना है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही रहे, हुए हैं।