कश्मीर घाटी के विस्थापितों का दंश करीब 35 साल से उनके सीने में जख्म की तरह पैबस्त है। वो विस्थापित रहे। टेंट में रहे। सांपों ने काट खाया। लेकिन कश्मीरी पंडितों को अब तक घर नही मिल पाया। साल 1990 से गृह मंत्रालय के जरिए कश्मीरी हिन्दू समाज को मिल रही रिलीफ में 30 जून 2024 से बाधा आई थी। मौजूदा रेखा सरकार ने उसका कुछ निस्तारण भी किया। लेकिन कश्मीरी पंडितों का इंप्लायमेंट पैकेज मनमोहन सरकार तक ही सीमित रहा. आगे नही बढ़ाया गया। पीडित परिवारो को नौकरी कैसे मिले इसके लिए ओवरएज हो चुके बच्चों की बात नही होती। सरकार से मिल रही रिलीफ खैरात नही है बल्कि इलाके के डिप्टी कमिश्नर पीड़ित परिवारों की जमीनों के कस्टोडियन है। पीड़ित परिवारों ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि उनकी जमीने और बाग में जितना प्रोडक्शन होता है सरकार की तरफ से दी गई राहत तो इसकी सूद भी नही। सरकार से जवाब मांग रहे वो क्यों नही दे रही है?
2008 में कश्मीरी माइग्रेंट्स के लिए पीएम पैकेज का ऐलान किया गया था. इस योजना में कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए नौकरियां भी निकाली गईं थीं. अब तक कश्मीरी पंडितों समेत अलग-अलग वर्गों के लिए इस योजना के तहत 2008 और 2015 में 6000 नौकरियों का ऐलान हो चुका है. कुछ हज़ार विस्थापित ये नौकरियां कर भी रहे हैं. इन लोगों को कश्मीर में बनाए गए ट्रांज़िट आवासों में रहना होता है. दिल्ली में रह रहे कश्मीरी विस्थापितों की सबसे बड़ी मांग है कि बाइफरकेशन लागू हो यानि सरकार से मिलने वाली राहतों में उनके परिवार के नए सदस्यों का भी नाम जुड़ सके लेकिन अफसोस सा नही हो पाया। तो क्या मौजूदा रेखा सरकार इस पॉलिसी को लागू करने जा रही है?
‘कश्मीर फाइल्स’ खिल्ली उड़ाई गई थी’
पिछली सरकारों का कश्मीरी हिंदू समुदाय के प्रति रवैया कैसा रहा है। जिस प्रकार से ‘कश्मीर फाइल्स’ की खिल्ली उड़ाई गई थी। वह कश्मीरी हिंदू समाज के प्रति उनकी दुर्भावना को दर्शता है। कश्मीरी विस्थापित हिन्दू समाज के कुछ विशेष मुद्दे थे। समाज ने आकर मुख्यमंत्री के सामने अपनी बात रखी थी। मुख्यमंत्री जी ने उन्हें सुना और उनकी समस्याओं का निवारण करने का आश्वासन दिया । हम कश्मीरी विस्थापित समाज के साथ खड़े है। हम उनके दुख को बांटने के लिए उनके साथ हरदम हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री उनके कष्ट को उनके आंसुओं को भलीभांति समझती है और उनके निदान के लिए गम्भीरता से सोच भी रही है।