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प्राइवेट स्कूलों की फीस मनमानी के खिलाफ बिल लाई दिल्ली सरकार- बिल की खास बातें सिर्फ यहां पर

दिल्ली में अब कोई भी स्कूल मनमानी फ़ीस नहीं बढ़ा पाएगा ; मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अध्यक्षता में Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 को दी कैबिनेट मंजूरी। सरकार ने कैबिनेट में ड्राफ्ट बिल पारित किया है, जो न सिर्फ सरकारी बल्कि सभी निजी स्कूलों में फीस निर्धारण को लेकर एक स्पष्ट, पारदर्शी और सुनियोजित प्रक्रिया को लागू करेगा।

यह पहली बार है जब दिल्ली के 1677 प्राइवेट स्कूलों के लिए फीस संबंधी दिशा-निर्देशों को कानून के तहत नियंत्रित किया जाएगा। कैबिनेट ने Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 को मंजूरी दी है। विधेयक के नाम से ही स्पष्ट है, यह कानून स्कूल फीस की न केवल प्रभावी निगरानी करेगा, बल्कि पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और जवाबदेह भी बनाएगा। अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि फीस में बढ़ोतरी हो या न हो, वह एक स्पष्ट, नियमानुसार और न्यायपूर्ण प्रक्रिया के तहत ही किया जाएगा।

पिछली बार के कानून से नया कानून कैसे अलग और पैरेंट फ्रेंडली

पिछले कानून में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं था कि स्कूल फीस कब, कैसे और कौन बढ़ा सकता है—बस इतना था कि फीस बढ़ाने के लिए स्कूल को केवल सूचित करना होता था। इसी गंभीर खामी को दूर करने के लिए इस नए विधेयक में तीन-स्तरीय समिति की व्यवस्था की गई है, जो फीस निर्धारण की प्रक्रिया को नियंत्रित और पारदर्शी बनाएगी।
इसमें पहले स्तर पर, प्रत्येक प्राइवेट स्कूल में स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी गठित की जाएगी। इस समिति के अध्यक्ष स्कूल प्रबंधन के चेयरपर्सन होंगे, सचिव के रूप में स्कूल की प्रिंसिपल होंगी, तीन शिक्षक सदस्य होंगे, और पांच अभिभावक शामिल किए जाएंगे। इसके अलावा, शिक्षा निदेशक का एक प्रतिनिधि निरीक्षक (आब्जर्वर) के रूप में इस समिति में रहेगा। उन्होंने बताया कि इन पांच अभिभावकों का चयन स्कूल की पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन के सदस्यों में से लॉटरी प्रणाली के माध्यम से किया जाएगा, ताकि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष हो। यह समिति 1 साल के कार्यकाल के लिए गठित होगी और स्कूल फीस को बढ़ाने या उससे संबंधित किसी भी निर्णय को लेने के लिए जिम्मेदार होगी।
इस पांच सदस्यीय समिति में विविधता सुनिश्चित करने के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि इसमें कम से कम एक अभिभावक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से हो और कुल सदस्यों में से कम से कम दो महिलाएं हों। स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी स्कूल की फीस बढ़ाने या उसके निर्धारण से जुड़े निर्णय प्रमुख मानकों के आधार पर करेगी। इनमें प्रमुख रूप से यह देखा जाएगा कि स्कूल की इमारत की स्थिति क्या है, खेल का मैदान कैसा है, स्कूल के पास कितनी वित्तीय संपत्ति या राशि उपलब्ध है, स्कूल की मौजूदा बुनियादी सुविधाएं कैसी हैं, स्कूल किस ग्रेड में आता है, वह अपने शिक्षकों को कौन-सी पे-कमिशन के तहत वेतन देता है, प्रॉफिट की स्थिति क्या है, लाइब्रेरी की गुणवत्ता कैसी है, क्या स्कूल डिजिटल सुविधाओं से सुसज्जित है, आदि। इन सभी बिंदुओं का मूल्यांकन कर समिति पारदर्शी ढंग से निर्णय लेगी।
अगर किसी को फैसला चेलेंज करना है तो उसके लिए डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट समिति और रिविज़न समिति तक का सिस्टम तैयार किया गया है। डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट समिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस कमिटी कि अध्यक्षता संबंधित जिले के डिप्टी डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन करेंगे। इस समिति में जोन के डिप्टी डायरेक्टर सदस्य-सचिव होंगे, एक चार्टर्ड अकाउंटेंट शामिल होगा, और एक जिला लेखाकार पदाधिकारी शामिल रहेंगे, जो उस क्षेत्र के खातों और वित्तीय पहलुओं की देखरेख करेगा। इसके अलावा चुने गए दो शिक्षक और दो अभिभावक भी इस समिति का हिस्सा होंगे। यह समिति जिला स्तर पर फीस निर्धारण से जुड़ी अपीलों की सुनवाई करेगी और प्राप्त मामलों पर 30 से 45 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। यदि अपीलकर्ता को जिला समिति के निर्णय से संतोष नहीं होता, तो मामला राज्य स्तर की समिति के पास भेजा जाएगा।


राज्य स्तर पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता एजुकेशन के डायरेक्टर करेंगे, जिन्हें मंत्रालय द्वारा नामित किया जाएगा। इस समिति में सात सदस्य शामिल होंगे: एक प्रतिष्ठित शिक्षा विशेषज्ञ , एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, लेखा नियंत्रक, निजी स्कूलों से संबंधित एक विशेषज्ञ, अभिभावक और शिक्षा निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक । यह समिति जिला स्तर की समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा करेगी और आवश्यक होने पर अंतिम निर्णय सुनाएगी।

-मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का बड़ा ऐलान — स्कूल फीस निर्धारण में अब पारदर्शिता और जवाबदेही होगी सुनिश्चित

-अब हर स्कूल में बनेगी फीस रेगुलेशन कमिटी, अभिभावकों को मिलेगा सीधा निर्णयकारी अधिकार

-बिना अनुमति फीस बढ़ाने पर लगेगा ₹10 लाख तक जुर्माना, स्कूल की मान्यता भी की जा सकती है रद्द

-फीस विवाद की अपील के लिए तीन-स्तरीय समिति प्रणाली लागू

— स्कूल, जिला और राज्य स्तर की गठित होगी समिति

-अबतक दिल्ली के 970 स्कूलों का हुआ निरीक्षण, 150 से अधिक स्कूलों को फ़ीस वृद्धि संबंधी शिकायतों पर नोटिस जारी

दिल्ली कैबिनेट ने Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी। यह ड्राफ्ट राष्ट्रीय राजधानी भर में स्कूल फीस में अत्यधिक वृद्धि को लेकर अभिभावकों के बीच बढ़ती शिकायतों को संज्ञान में लेकर तैयार किया गया है।

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि कुछ प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वृद्धि और बच्चों को स्कूल से निकालने की शिकायतें सामने आईं। अभिभावकों और छात्रों ने आरोप लगाए कि स्कूल प्रबंधन न केवल अवैध रूप से फीस वसूल रहा है, बल्कि फीस न देने की स्थिति में छात्रों को परेशान किया जा रहा है और स्कूल से बाहर करने की धमकी दी जा रही है। इन गंभीर शिकायतों के समाधान के लिए डिप्टी कमिश्नरों को संबंधित स्कूलों में जांच के लिए भेजा। जांच के बाद उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की और स्कूलों का ऑडिट भी कराया गया। साथ ही यह भी परखा गया कि फीस वृद्धि की प्रक्रिया पूर्व में कैसी रही है और उसे किस तरह रोका जा सकता है।


मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह समस्या वर्षों पुरानी है, लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने स्कूल फीस नियंत्रण के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई थी।

1973 में बने दिल्ली स्कूल्स एडुकेटर्स एक्ट में फीस से संबंधित एकमात्र उल्लेख था, जिसमें यह स्पष्ट नहीं था कि प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर सरकार किस तरह से नियंत्रण रख सकती है।

पूर्ववर्ती सरकार पर कटाक्ष करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली सरकारों ने 27 वर्षों तक इस मुद्दे को अनदेखा किया, लेकिन हमारी सरकार ने केवल 65 दिनों में यह ऐतिहासिक कदम उठाया। इतने कम समय में हमने एक प्रभावशाली बिल तैयार कर, उसे कैबिनेट से पारित कर दिल्ली की जनता के समक्ष एक नया प्रशासनिक दृष्टिकोण और सुशासन का उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने आगे बताया कि 28 अप्रैल, 2025 तक दिल्ली के 970 स्कूलों का निरीक्षण किया जा चुका है। 150 से अधिक स्कूलों को फ़ीस वृद्धि संबंधी शिकायतों पर नोटिस जारी किए गए हैं। 42 स्कूल ऐसे पाए गए हैं जो डमी क्लासेस चला रहे थे, जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। इसके अलावा, किताबें और यूनिफ़ॉर्म न देने से जुड़ी 300 से अधिक शिकायतों को भी सफलतापूर्वक सुलझाया जा चुका है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि दिल्ली सरकार ने यह निर्णय लिया है कि प्रत्येक स्कूल में स्कूल स्तर की समिति का गठन 15 जुलाई तक कर लिया जाएगा। इसके बाद, यह समिति 31 जुलाई तक फीस से संबंधित प्रस्ताव तैयार कर प्रस्तुत करेगी। समिति द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव पर कमिटी द्वारा 15 सितंबर तक अंतिम निर्णय लिया जाएगा। यदि समिति की ओर से कोई अतिरिक्त सुझाव नहीं आते हैं, तो प्रस्ताव को 30 सितंबर तक जिला स्तरीय समिति को भेज दिया जाएगा, ताकि वह समय रहते अगली शैक्षणिक सत्र में लागू की जाने वाली फीस पर चर्चा कर निर्णय ले सके। इससे अभिभावकों को समय रहते यह स्पष्ट रूप से पता चल जाएगा कि फीस बढ़ेगी या नहीं। यदि किसी को इस निर्णय पर आपत्ति या सुझाव है, तो वह अपनी बात समिति के सामने रख सकता है। पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है—सभी रिकॉर्ड और बैलेंस शीट अभिभावकों के समक्ष प्रस्तुत किये जाएंगे।
फ़ीस बढ़ाने पर दंड के बारे में जानकारी इस विधेयक में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि यदि कोई स्कूल बिना समिति की अनुमति के एकतरफा तरीके से फीस बढ़ाता है, तो उस पर ₹1 लाख से ₹10 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर शिक्षा निदेशालय को ऐसे स्कूल की मान्यता रद्द करने और प्रबंधन अपने अधीन लेने का अधिकार भी प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त, यदि कोई स्कूल एकतरफा तरीके से फीस बढ़ाता है और फीस न देने पर बच्चों को कक्षा से बाहर बैठा देता हैतो इस पर भी कठोर कार्रवाई का प्रावधान है। 1973 के अधिनियम में इस प्रकार की मनमानी पर कोई ठोस प्रावधान नहीं था। ऐसी शिकायतें लगातार मिल रही थीं, लेकिन किसी भी सरकार ने इसे सुलझाने का प्रयास नहीं किया। यह विधेयक एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था स्थापित करता है जिसमें स्कूल प्रशासन, शिक्षक और अभिभावक मिलकर छात्रों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करेंगे। माननीय मुख्यमंत्री के नेतृत्व में यह पूरी प्रक्रिया एक समयबद्ध ढांचे में संचालित की जाएगी।
यह विधेयक दिल्ली के उन सभी अभिभावकों के लिए एक संजीवनी बनकर आया है, जो अब तक अपनी शिकायतों के समाधान के लिए भटकते रहे और जिन्हें कोई ठोस रास्ता नहीं मिलता था। पूर्व में कई बार ऐसे अभिभावकों को राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी। इस नए कानून के माध्यम से अभिभावकों को वह अधिकार मिलेगा, जिससे वे अपने बच्चों के भविष्य से जुड़े निर्णयों में सीधे और प्रभावी रूप से भागीदार बन सकेंगे।


इस अधिनियम के लागू होने के बाद, अक्टूबर माह में ही अभिभावक यह स्पष्ट निर्णय ले पाएंगे कि वे अपने बच्चे को उसी स्कूल में जारी रखना चाहते हैं या किसी अन्य विकल्प की ओर बढ़ना है। उन्हें अब अपनी परेशानियों के समाधान के लिए किसी के सामने गिड़गिड़ाने या सहायता की गुहार लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह कानून उन्हें इतना सशक्त बनाएगा कि वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने बच्चे के भविष्य को लेकर फैसला कर सकें। अब कोई भी स्कूल अपनी मनमानी नहीं कर पाएगा और न ही बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर सकेगा, क्योंकि सरकार ने यह साफ कर दिया है कि दिल्ली में अगर कोई स्कूल संचालित होना चाहता है, तो उसे नियमों और तय प्रक्रियाओं के अनुरूप ही काम करना होगा। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि सरकार शीघ्र ही एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर इस विधेयक को विधिवत रूप से पारित करेगी।
मीडिया को सम्बोधित करते हुए कैबिनेट मंत्री श्री आशीष सूद ने बताया कि आज कैबिनेट में Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 को पारित किया गया है। जबकि हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों ने पहले ही फीस नियमन संबंधी विधेयक पारित कर दिए थे, दिल्ली की पिछली सरकारें सिर्फ आस-पड़ोस के राज्यों की आलोचना करती रहीं और कुछ भवन बनाकर प्रचार करती रहीं। उन्होंने वास्तव में कभी भी फीस नियंत्रण की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह दिल्ली की माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और गुड गवर्नेंस के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है कि आज ऐसा मजबूत और पारदर्शी कानून बन पाया है, जो न केवल बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि अभिभावकों पर पड़ने वाले मानसिक दबाव को भी दूर करेगा।


उन्होंने आगे कहा कि अब स्कूलों की फीस को लेकर निर्णय अक्टूबर तक हो जाएगा, जिससे अगली अकादमिक सत्र से पहले अभिभावकों को पूरी स्पष्टता मिल सके। इस विधेयक के तहत अब कोई भी स्कूल मनमाने ढंग से फीस नहीं बढ़ा सकेगा। सभी निर्णय स्कूल और अभिभावकों के साथ मिलकर लिए जाएंगे, लेकिन नियमन का अधिकार सरकार के पास होगा। इस अधिनियम की धारा 14 डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन को यह अधिकार देती है कि वह किसी भी स्कूल के रिकॉर्ड, खातों और दस्तावेजों की जांच कर सके और आवश्यक कार्रवाई कर सके। यह कानून अन्य राज्यों के मौजूदा कानूनों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिल्ली को लेकर दिए गए निर्देशों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।

आम आदमी पार्टी के दिल्ली कन्वीनर सौरभ भारद्वाज ने बिल को पेरेंट से वसूली और प्राइवेट स्कूलों के लिए प्रॉफिट का हथियार बताया।

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