दिल्ली हाई कोर्ट ने एमसीडी के कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स को सातवें वेतनमान के हिसाब से सैलरी देने का आदेश दिया है हाई कोर्ट के ही आदेश के बाद एमसीडी के करीब ढाई हजार कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स में खुशी की लहर है
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की बेंच ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि समान काम का समान वेतन संवैधानिक सिद्धांत पर आधारित है लिहाजा समान वेतन तो मिलना ही चाहिए। बेंच ने सवाल भी उठाया कि जब निगम के स्कूल में रेगुलर और कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स एक समान काम कर रहे हैं तो उनके वेतन में फर्क क्यों
एक्सपर्ट ने बताया मील का पत्थर
शहरी मामलों के जानकार व एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगांई ने दिल्ली उच्च न्यायालय के दिल्ली नगर निगम में अनुबंध पर कार्यरत शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के समान सातवें वेतनमान के हिसाब से वेतन देने के आदेश को मील का पत्थर बता इसका स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि ‘समान काम के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत पर अमल होना चाहिए और न केवल शिक्षक बल्कि दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम, एनडीएमसी आदि सभी निकायों में अनुबंध पर विभिन्न विभागों में कार्यरत सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन दिया जाना चाहिए।
ममगांई ने कहा कि नियमित व अनुबंध पर एक ही कार्य करने वाले दो व्यक्तियों की आवश्यक शैक्षिक योग्यता, परिश्रम, कार्य परिणाम आदि समान है तो उन्हें मेहनताना भी समान मिलना ही चाहिए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘समान काम के लिए समान वेतन’ के संवैधानिक सिद्धांत की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के इस आदेश को आधार बनाकर अनुबंध पर कार्यरत निगम व विभिन्न निकायों के कर्मचारी भी न्यायालय का संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं, पर क्या यह जरुरी है? मल्टीपल इंजन की दिल्ली सरकार खुद पहल कर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को आधार बनाकर दिल्ली के सभी निकायों में अनुबंध पर कार्यरत सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन नहीं दे सकती ताकि कर्मचारियों को न्यायालय का चक्कर लगा आदेश प्राप्त करने में समय बरबाद न करना पड़े!
जगदीश ममगांई ने दिल्ली नगर निगम को चेताया है कि अपने ही शिक्षकों के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायालय के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे उन्हें मिलने वाले लाभ को लंबित न करे क्योंकि एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि अस्थायी कामगार को भी स्थायी की तरह मेहनताना पाने का हक है तथा ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत पर मुहर लगा चुका है। इस मामले में भी पहले केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने यह फैसला दिया था जिसको दिल्ली नगर निगम ने दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी पर निगम को मुँह की खानी पड़ी।
ममगांई ने कहा कि डीबीसी कर्मियों को दिल्ली सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम वेतन देने के मामले में भी निगम कैट में हारा तो दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 4 दिसंबर 2019 को आदेश दिया कि 1 जनवरी 2020 से घरेलू प्रजनन चेकर्स (डीबीसी) के कर्मचारियों को फूड हाइजीन बेल्डर्स के समान भुगतान किया जाए क्योंकि डीबीसी कर्मचारी और फूड हाइजीन बेल्डर्स, दोनों की श्रेणी समान है, फूड हाइजीन बेल्डर्स को रु 28,400 से रु 34,000 का मूल वेतन मिल रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध निगम सुप्रीम कोर्ट में गया परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। इसके बावजूद निगम ने डीबीसी कर्मियों का वेतन नहीं बढ़ाया जिस पर न्यायालय की अवमानना व कार्रवाई हेतु डीबीसी कर्मी पुनः सुप्रीम कोर्ट गए हैं, 19 अगस्त को सुनवाई है।