सर्दियों में जिस दिन सूरज नहीं निकलता, धूप की कीमत उसी दिन पता चलती है। हमारे जन्म से जब तक हम जिएंगे वो बिना लाग-लपेट, छुट्टी के उगता और अस्त होता रहेगा। किसी टूरिस्ट प्लेस पर झरने को बहने के लिये बोलना नही पड़ता वो भी Effortless, एक हम हैं जो बोलने पर इतना ध्यान देने लगे हैं कि चुप रहना या मौन रहना भूल ही गये हैं। इंसान बोलते हैं तो चुप नही होते और चुप रहते हैं तो फिर बोलने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। कमाल देखिए प्रकृति से अलग इंसान को बोलने के लिए स्पीकिंग कोर्स है।
सुनने चुप रहने या फिर मौन के बारे में कोई बात ही नहीं करता। एक दिन ध्यान करिए, चुप रहिए और मौन की प्रैक्टिस करिए। सिर्फ 10 मिनट ज्यादा नहीं। अहसास होगा बोलने में हम गंवाते हैं और मौन में पा जाते हैं।
ऐसे लगेगा जैसे बोले तो कुछ खो दिया या खत्म कर दिया। सुना तो पा लिया। बोलना outgoing और मौन रहना incoming है। हम वहीं हैं लेकिन बोले तो खो दिया और मौन रहे तो पा लिया पेड़, सूर्य, पृथ्वी, मिट्टी, दिन-रात की तरह Effortless है ये चुप रहना। एक होता है खाने की कमी से मौत होना जबकि ज्यादा खाने से भी मौत हो जाती है। खुद की सूचना और बोलने की लिमिट तय करिए वरना खो देगें।