साउथ ज़ोन के डीसी बादल कुमार के खिलाफ सदन ने क्यों प्रस्ताव पास किया?
50% MCD के प्रमोटेड स्टाफ को डिप्टी और एडिशनल कमिश्नर रैंक पर लगाया जाना चाहिए। डेपुटेशन पर आए अधिकारी पक्षपात कर हमारे तंत्र को प्रभावित करते हैं। इनकी पॉलिसी है लूटो और भागो। ऐसे अधिकारी निगम के प्रमोटेड स्टाफ को बैकफुट पर रखते हैं।
12 डिप्टी कमिश्नरों (डीसी) में से केवल छह को किसी भी समय प्रतिनियुक्ति पर सर्विस देने की अनुमति है। लेकिन एमसीडी के सभी 12 डीसी प्रतिनियुक्ति पर हैं
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने एक दूसरे पर नाकामी के आरोप लगाना शुरू कर दिया है। सिविक मुख्यालय में 19 दिसंबर को निगम सदन की बैठक में एक बड़ी घटना हुई जब आप शासित एमसीडी ने साउथ जोन के डीसी को हटाने का प्सताव पारित कर दिया। आपको बता दें कि सांख्यिकी सेवा विभाग से एक साल के लिए एमसीडी में आए बादल कुमार की प्रति नियुक्ति (Deputation) जुलाई 2024 में खत्म हो गई थी। भर्ती नियमों के अनुसार, 12 डिप्टी कमिश्नरों (डीसी) में से केवल छह को किसी भी समय प्रतिनियुक्ति पर सर्विस देने की अनुमति है। लेकिन एमसीडी के सभी 12 डीसी प्रतिनियुक्ति पर हैं। पहले बादल कुमार को एमसीडी के अन्य क्षेत्रों में अपनी परफार्मेंस के कारण बार-बार ट्रांसफर का सामना करना पड़ा था। अब एमसीडी हाउस ने स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, उन्हें उनके प्रभार से मुक्त करने का फैसला लिया है। नियमानुसार, 12 में से सिर्फ 6 डीसी को प्रतिनियुक्ति पर लिया जा सकता है, फिर भी एमसीडी में तैनात सभी डीडी प्रतिनियुक्ति पर हैं। पहले बादल कुमार को एमसीडी के अन्य क्षेत्रों में अपनी परफार्मेंस के कारण बार-बार ट्रांसफर का सामना करना पड़ा था, अब सदन ने उन्हें चार्ज से मुक्त कर दिया है। मूल रूप से भारतीय सांख्यिकी सेवा से जुड़े बादल कुमार एक साल से एमसीडी में प्रतिनियुक्ति पर थे, उनकी प्रतिनियुक्ति अवधि जुलाई 2024 में समाप्त हो गई थी। दरअसल कई पार्षदों की शिकायत थी कि डीसी उनके इलाकों में काम नही करने देते थे।
डेपुटेशन पर आए ऑफिसर्स ने एमसीडी को एटीएम मशीन समझा
हालांकि बादल कुमार पर भस्ट्राचार जैसे कोई आरोप नहीं लगे सदन से प्रस्ताव पास होने पर उन्हें बाहार जाना ही था लेकिन स्पेशल स्टोरी में खुलासा करेंगे कि डेपुटेशन पर आए बहुत से अफसर एमसीडी में जमे बैठे है और निगन निकाय को एटीएम मशीन समझते हैं। गार्बेज राजधानी के तौर पर कुख्यात दिल्ली के अधिकतर कम्युनिटी सेंटर खस्ताहालत में है। जगह-जगह रेहडी पटरी का अतिक्रमण दिखाई देता है तो कॉलोनी की गलियों में कचरा इकट्ठा है। राजधानी दिल्ली में तीन कूड़े के पहाड़ राजधानी की सिविक समझ को लेकर मुंह चढ़ाते हैं। डेपुटेशन पर आए अधिकतर अधिकारी मातहत स्टाफ के जरिए अवैध निर्माण पर पैनी नजर रखते हैं। ये सिर्फ यह देखते हैं कि कमाई कहां से आ रही है? कहां लिंटर डल रहा है? यही वजह है इनके अजेंडे में टूटे हुए फुटपाथ नहीं होते।
कैसे बचेगी दिल्ली?
दिल्ली के 250 वार्ड में 12 ज़ोन हैं जहां Dupty कमिश्नर्स का शासन चलता है। एडमिनिस्ट्रेटिव रूल अलग-अलग zone के Dupty कमिश्नर्स के जरिए होता है। ऐसे में मेयर और कमिश्नर को ऐसे ऑफिसर्स का संज्ञान लेना चाहिए की इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज से वह ऑफिसर्स डेपुटेशन पर आए और नॉन IAS को बाहर का रास्ता दिखाएं। नियमानुसार, 12 में से सिर्फ 6 डीसी को प्रतिनियुक्ति पर लिया जा सकता है, फिर भी एमसीडी में तैनात सभी डीडी प्रतिनियुक्ति पर हैं। MCD के सूत्रों ने बताया कि रेलवे से आए डीसी संदीप कुमार तत्कालीन कमिश्नर ज्ञानेश भारती के सबसे खास माने जाते रहे जिन्हे मलाई काटने का मौका बार-बार दिया जा रहा था। बादल कुमार खुद सांख्यिकी विभाग से रहे तो करोल बाग जोन में फौज से आए हुए करनल है तो कुछ डीसी कैग से एमसीडी आए हैं। सवाल यहा है कि कैग, फौज, सांख्यिकी विभाग से डेपुटेशन पर आए अधिकारियों की दिल्ली के सिविक इश्यूज़ की समझ कितनी होगी?
एमसीडी के अनुभव वाले इंजीनियर्स को बैकफुट पर रखते हैं डेपुटेशन अधिकारी
MCD engineering forum के अध्यक्ष नरेश शर्मा ने कहा कि “50% MCD के प्रोमोटेड स्टाफ को डिप्टी और एडिशनल कमिश्नर रैंक पर लगाया जाना चाहिए। ये पक्षपात करते हैं। और हमारे तंत्र को प्रभावित करते हैं। इनकी पॉलिसी है लूटो और भागो। डेप्युटेशन पर आए अधिकारी निगम के प्रोमोटेड स्टाफ को बैकफुट पर रखते हैं। आज आप ने इसलिए प्रस्ताव पास किया क्योंकि उनके अधिकारी से काम करना सकेंगे। सिविल लाइन के डीसी रहे महेश भारद्वाज को जोनल हेडक्वार्टर में बिठा दिया। कम अनुभव वाले दानिक्स ऑफिसर्स ज्यादा अनुभव वाले MCD स्टाफ को बैकफुट पर रखते हैं। ये इनकी पॉलिसी है। अलका शर्मा एडिशनल कमिश्नर फाइनेंस रही हैं। जो कि MCD स्टाफ रही। सब कुछ कमिश्नर पर निर्भर करता है। 50% हमारा कोटा है। कितने कॉरपोरेशन के प्रोमोटेड और कितने बाहर के हैं। आर्मी कमांडेंट bsf से आए mha से डेप्युटेशन पर आया है। निगम जस्टिफाई करके बताएं कितने लोग बाहर के लगे हैं। आर्मी से कर्नल है।
एग्जीक्यूटिव विंग ( Executive Wing) के हेड MCD के कमिश्नर हैं
किसी भी लोकतांत्रिक देश में निगम वह सबसे छोटी यूनिट है जिसके जरिए गवर्नेंस को अंजाम दिया जाता है। वह भी लोकतांत्रिक तरीके से ही। राजधानी दिल्ली का नगर निगम लोगों को सिविक सुविधा प्रदान करता है। करीब चार करोड़ की जनसंख्या वाली राजधानी दिल्ली किसी यूरोपियन कंट्री जितनी बड़ी है जन्म से लेकर मृत्यु का सर्टिफिकेट, हेल्थ केयर, प्रायमरी एजुकेशन, सैनिटेशन, गलियों का विकास, ड्रेनेज सिस्टम, कम्युनिटी सर्विस आदि सब कुछ सब कुछ दरअसल दिल्ली नगर निगम ही करता है। दिल्ली नगर निगम का एग्जीक्यूटिव विंग ( Executive Wing) इन सभी गतिविधियों को अंजाम देता है. एग्जीक्यूटिव विंग के हेड MCD के कमिश्नर होते हैं।
तो इसलिए हो रहा दिल्ली नगर निगम का बेड़ागर्क
ये विंग अलग-अलग डिपार्टमेंट में बंटा हुआ है ताकि दिल्ली के 250 वार्ड में न केवल MCD के सारे काम हो सके बल्कि बेहतर एडमिनिस्ट्रेटिव कंट्रोल भी किया जा सके। यही वजह है कि एमसीडी को कुल 12 जोन में बांटा गया है हर जोन का सर्वे सर्वा डिप्टी कमिश्नर (डीसी) ही होता है। परंपरा के साथ-साथ म्युनिसिपालिटी की गाइडलाइन के मुताबिक एडमिनिस्ट्रेटिव पोस्ट के लिए करीब 50% कारपोरेशन के रेगुलर ऑफिसर्स को लगाया जाना चाहिए और बाकी वो इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज ( IAS) के वो ऑफिसर्स जो डेपुटेशन पर आए हुए हैं। लेकिन दिल्ली नगर निगम के भाग्य में ऐसा नहीं है दुर्भाग्य से अब तक के MCD कमिश्नर्स ने अपने मनमुताबिक ही डेपुटेशन के अधिकारियों को लगाया। हद तो तब हो गई जब रेलवे सांख्यिकी विभाग और तमाम अलग-अलग विभागों के ऐसे लोग जो IAS नहीं है उन्हें डेपुटेशन पर लाया गया। ऐसे ऑफिसर्स को एमसीडी का मूलभूत ज्ञान नहीं होता और वह खुद का सबसे बड़ा एजेंडा पैसे बनाने का काम करते हैं। ऐसे अधिकारियों का एमसीडी से पैसे कूटने का उद्देश्य राजधानी दिल्ली की सिविक सर्विसेज को प्रभावित करता है उनका कुछ इसलिए भी नहीं बिगड़ा क्योंकि किसी भी गड़बड़ की स्थिति में वह मूल का डर चले जाएंगे।