पिछले 6 सालों (2019 से अब तक) में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं या फिर उपचुनावों में 27 दोलों ने अपने दल से किसी भी उम्मीदवार को चुनाव में खड़ा नहीं किया है। आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार, इन दलों ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के अंतर्गत पंजीकरण तो करवा लिया था, परंतु पिछले सालों में किसी भी चुनावी गतिविधि में भाग नहीं लिया है।
ऐसे में आयोग को लगता है कि ये दल अब उस अधिनियम के अनुसार कार्य नहीं कर रहे हैं। इसलिए निर्वाचन आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत इन दलों को पंजीकृत दलों की सूची से हटाने (डीलिस्ट करने) की प्रक्रिया शुरू की है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सभी संबंधित राजनीतिक दलों से अपेक्षा की कि वे निर्धारित समय सीमा में अपना पक्ष रखें और स्पष्ट करें कि क्यों उन्हें सूची से न हटाया जाए। यदि संबंधित राजनीतिक दलों का समय पर उत्तर प्राप्त नहीं होता है तो यह मान लिया जाएगा की पार्टी के पास इस विषय में कहने के लिए कुछ नहीं है और आयोग उचित आदेश पारित करेगा जिसकी कोई और सूचना पार्टी को नहीं दी जाएगी।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने यह भी स्पष्ट किया की निर्वाचन आयोग द्वारा प्रस्तावित कार्रवाई से पूर्व, संबंधित राजनीतिक दलों को अपना पक्ष रखने अथवा कारण स्पष्ट करने का अवसर प्रदान किया जा रहा है
इस संबंध में राजनीतिक दल यदि चाहें तो इस विषय में लिखित रूप में अपना पक्ष प्रस्तुत करें। प्रतिनिधित्व पार्टी के अध्यक्ष या महासचिव के शपथ-पत्र के साथ प्रस्तुत किया जाएगा जिसमें वे सभी दस्तावेज़ संलग्न हों जिन पर पार्टी भरोसा करना चाहती है। विवरण अंतिम रूप से 18.07.2025 तक मुख्य निर्वाचन अधिकारी को दिया जाना है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने यह भी बताया की संबंधित पार्टी की सुनवाई की तिथि 15.07.2025 निर्धारित की गई है। सुनवाई के समय पार्टी के अध्यक्ष/महासचिव/प्रमुख को स्वयं उपस्थित होना होगा। किसी प्रकार का कोई उत्तर नहीं मिलने पर मान लिया जाएगा कि पार्टी के पास इस विषय में कहने के लिए कुछ नहीं है और आयोग उचित आदेश पारित करेगा, जिसकी कोई और सूचना पार्टी को नहीं दी जाएगी।